आंत ज्वार :
यह सल्मोनेला टाइफोसा नामक जिवाडु होता है | इसे आंत का बुखार या टाइफाइड के नाम से भी जाना जाता है | ये रोग पानी की गन्दगी से फैलता है | रोगी की प्लीहा और आंत योजनी ग्रन्थि बड़ जाती है | रोगी को तेज बुखार रहता है | और सर मैं दर्द बना रहता है।
लक्षण :
जीवाडु के संपर्क मैं आने के 2 से 3 हफ्ते बाद ये लक्षण दिखाई देंगे जैसे
इस बीमारी मैं रोगी को 102 से 104 डिग्री बुखार रहता है पेट मैं दर्द और सिर दर्द बना रहता है भूख भी नहीं लगती है और सुस्ती , डायरिया , कब्ज , और ह्रदय की गति भी धीमी होती है
उपचार :
रोगी व्यक्ति को मल - मूत्र निवास स्थान से दूर करना चाहिए। भोजन को मखियों बचाना चाहिये। इसकी चिकिस्ता लिये कोलोरोमाएसिटिन औषोधि का उपयोग किया जाता है।
बचाव :
बाहरी और खुली हुवे चीजों खाने से बचे और साफ़ पानी पिये , हो सके तो पानी उबाल ले और फिर कुछ देर ठंडा होने के बाद पिये , खाना भी अच्छी तरह से पका हुवा होना चाहिये। हरी सब्जिया खाये बस ये धयान रहे की छलके वाली सब्जिया या फल को छिलका साफ़ कर के खाये।
यह सल्मोनेला टाइफोसा नामक जिवाडु होता है | इसे आंत का बुखार या टाइफाइड के नाम से भी जाना जाता है | ये रोग पानी की गन्दगी से फैलता है | रोगी की प्लीहा और आंत योजनी ग्रन्थि बड़ जाती है | रोगी को तेज बुखार रहता है | और सर मैं दर्द बना रहता है।
लक्षण :
जीवाडु के संपर्क मैं आने के 2 से 3 हफ्ते बाद ये लक्षण दिखाई देंगे जैसे
इस बीमारी मैं रोगी को 102 से 104 डिग्री बुखार रहता है पेट मैं दर्द और सिर दर्द बना रहता है भूख भी नहीं लगती है और सुस्ती , डायरिया , कब्ज , और ह्रदय की गति भी धीमी होती है
उपचार :
रोगी व्यक्ति को मल - मूत्र निवास स्थान से दूर करना चाहिए। भोजन को मखियों बचाना चाहिये। इसकी चिकिस्ता लिये कोलोरोमाएसिटिन औषोधि का उपयोग किया जाता है।
बचाव :
बाहरी और खुली हुवे चीजों खाने से बचे और साफ़ पानी पिये , हो सके तो पानी उबाल ले और फिर कुछ देर ठंडा होने के बाद पिये , खाना भी अच्छी तरह से पका हुवा होना चाहिये। हरी सब्जिया खाये बस ये धयान रहे की छलके वाली सब्जिया या फल को छिलका साफ़ कर के खाये।
Thanks